FOUNDERS OF SARA
Swami Atulanand ji Maharaj
शिक्षा हमारे व्यक्तित्व का एक आभूषण है जो हमारे जीवन को सभी मानवीय गुणों से
अलंकृत करता है | ये मानवीय गुण और इनकी सहजता ही तो मोक्ष का मार्ग है | उत्तम
शिक्षा हमें समाजोपयोगी बनाती है | सदियों से मानव इन्हीं गुणों से ओतप्रोत शिक्षा
कि खोज में रहा है |
मैं अपने शिष्य - डा० राज सिंह को उनके इस भागीरथ प्रयास के लिए व् शिक्षा कि
गुणवत्ता को उन्तरोत्तर बढाने के लिए बधाई देता हूँ, साथ ही कामना करता हूँ कि वो
अपने इस प्रयास में शत प्रतिशत सफल होंगे |
Late Dr. Raj Singh (Founder, Sant Atulanand Rachana Parishad)
शिक्षा का उद्देश्य आत्मा की उन्नति है, और विद्यालय अध्ययन केंद्र से बढ़कर चरित्र
निर्माण और राष्ट्र निर्माण के केंद्र। विद्यालय एक मानसिक व्यायाम शाला होती है
जहां संयम, अनुशासन और सतत प्रयास के मूल्य विद्यार्थियों में आरोपित किए जाते हैं।
युवाओं में भविष्य निर्माण का सामर्थ्य और राष्ट्रीय चरित्र को आकार देने की क्षमता
होती है परंतु यह परिवर्तन स्वयं से शुरू होता है। सिर्फ विद्यार्थियों का ही नहीं
वरन् संपूर्ण शिक्षा जगत का यह ध्येय होना चाहिए कि "हम सुधरेंगे जग सुधरेगा"।आज के
युग में डॉक्टर, इंजीनियर या आईएस बनाना यह शिक्षा का व्यावसायिक लक्ष्य हो सकता
है, किंतु शिक्षा का नैसर्गिक लक्ष्य एक बेहतर इंसान और राष्ट्र का जिम्मेदार
नागरिक बनाना है। हमारी कोशिश वैश्विक मापदंडों पर आधारित आधुनिक वैज्ञानिक और
गुणवत्ता परक शिक्षा भारतीय मूल्यों के साथ पिरो कर राष्ट्र के हर सामाजिक, आर्थिक
वर्ग तक पहुंचाना है। मुझे विश्वास है कि यह विद्यालय "मानव मात्र की सेवा" के अपने
उच्चतम आदर्श के प्रति सदैव निष्ठावान रहेगा और शिक्षा तथा सेवा के क्षेत्र में
नित्य नवीन कीर्तिमान स्थापित करेगा।
विद्यार्थियों के लिए भी आवश्यक है कि वह लक्ष्य के प्रति पूर्ण समर्पण के साथ सतत
प्रयत्नशील रहें। जो पत्थर छेनी हथौड़ी के प्रहार सह नहीं पाते उन्हें देवता बनकर
मंदिर में पूजे जाने का अधिकार नहीं होता इसलिए:
"मन को बली बना लो इतना, टेक न छोड़े आठो याम ।
तन को बली बना लो इतना, सहले सर्दी, वर्षा, घाम ।
कर्म क्षेत्र है यह पृथ्वी तल, व्यर्थ यहां आलस आराम।।"
मेरी यही अन्तिम इच्छा है कि सन्त अतुलानंद आवासीय विद्यालय के समस्त छात्र,
अध्यापक, कर्मचारी अन्य सभी चिंताओं से परे होकर सिर्फ अपने कर्म की चिंता करें,
यही मेरे लिए परम संतोष का आधार होगा। प्रत्येक आने वाला वर्ष आपके लिए ज्ञान और यश
के नए सोपान लेकर आए यही मेरी सदिच्छा है...
Mrs. Vidya Singh
The education of a human being should begin at birth and continue throughout his
life. The first thing to do in order to be able to educate a child is to educate
oneself, to become conscious and master of oneself so that one never sets a bad
example in front of one’s child. To speak good words and to give wise advice to
a child have very little effect if one does not give him an example of what he
teaches. Eternal values of sincerity, honesty, straight forwardness, courage,
unselfishness, patience, endurance, peace, calm and self control are all things
that are taught infinitely better by examples than by beautiful speeches. Those
parents or teachers who have high ideals should always showcase these ideals
through their own behaviours. Certainly those ideals will reflect in their
children.
My best wishes are always with the students, teachers and parents of SARA.